Friday, 27 December 2013

EK AAM KAHANI # 1

Friday, December 27, 2013 By , , 10 comments


फ़ोटो से ग़ुमराह मत होइएगा। :P

एक दिन दफ्तर से घर लौटते समय शर्मा जी ने भाजी खरीदने का सोचा। रात काफी हो जाने के कारण सब्जी कि दूकान ढूढ़ पाना थोडा मुश्किल था। परंतु काफी मशक्कत के बाद एक अँधेरी सी जगह पर एक महिला कुछ सब्जी लिए बेठे दिखी, तो वही से सब्जी खरीदने का निश्चय किया। अतः उस दूकान पर जा पहुँचे।

'ये भाजी कैसे दी', भाजी कि 1 गठान हाथ में लिया शर्मा जी ने पूछा।
'वैसे तो 15 कि है  साहब पर अब दूकान बंद करने का समय है तो 10 कि लगा देंगे'|

ये सुनते ही शर्मा जी ने बिना वक़्त ज़ाया करे उसे दस का फटा हुआ नोट पकड़ा दिया जो कि कँही भी नही चल रहा था और अपने चेहरे में मंद मुस्कान लिए जल्द से अपनी साइकिल कि ओर बढ़ चले।

वहीं दूसरी तरफ़ सब्जी वाली भी खुश थी क्यूंकि उसकी सड़ी हुई भाजी किसी ने आख़िरकार ख़रीद ली थी।


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10 comments:

  1. vayang kasna ki kla main mahir pratit hote ho..:)
    Bahut ache..:P :P :P

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    1. Sab upar wale ki kripa he :)
      Jaan ke acha laga ki kanahi aapko pasand aayi.
      Aate rahiyega O:)

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  2. Replies
    1. Omg! Sreesha, you know to read Hindi!!!
      I wasn't aware or I should say I didn't contemplate about it given your South Indian background.
      Good :)

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    2. Haha, well I can read cos I wasn't brought up in the south. With that said, I know a bunch of people (friends, cousins etc) who were raised in the south and can read as well. It's nothing more than a stereotype nowadays, I guess...

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    3. Roger that Sreesha B:) :P
      And yeah, it was one damn lame assumption! :D :X
      Thanks for clarifying the doubt! :)

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  3. Quite entertaining Varun! Keep it up!

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  4. this is a real story of aam aadmi..keep going varun...

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    1. Thank you ma'am :)
      Overjoyed to have found your comment on my blog!
      O:)

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